लेखनी प्रतियोगिता -सिलसिला
सिलसिला
हम तुमसे बात करते सदा,
तुम रूठते मनाते सदा।
यह सिलसिला यूंँ ही चलता रहा,
रूठने का दौर यूं ही बढ़ता रहा।
आखिर एक दिन जब हम रूठे,
तुम मना क्यों नहीं पाए।
तुम हमारा रूठना सह क्यों नहीं पाए।
खाना मैं रोज बनाती,
कमियांँ तुम निकाला करते।
खाना एक दिन तुमने क्या बनाया ,
नमक डालना भूल गए।
जब मैंने कुछ यूं ही बोला ,
तुम सह क्यों नहीं पाए।
घूमने की बात करूँ,
दिलाओ कुछ मुझको नया।
लाते तुम अपनी मर्जी से,
ले आई जब एक दिन में।
तुम सह क्यों नहीं पाए,
आए मेहमान रोज हमारे।
खातिरदारी में तो करती,
आए जो इक दिन मां बाप मेरे।
चाय उन्हें पिला दी,
तुम सह है क्यों नहीं पाए।
बोलते तुम मुझको अर्धांगिनी,
खर्चू जो अपनी मर्जी से,
इतना सा भी सह नहीं पाए।।
समझोगे क्या व्यथा मेरी,
हुक्म चलाना तुम तो जानो।
मेरी तरह करके तो देखो ,
तब तुम ही मुझ को पहचानो।।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
#प्रतियोगिता हेतु
shweta soni
31-Aug-2022 11:54 AM
Behtarin rachana
Reply
Abhinav ji
28-Aug-2022 10:51 PM
Nice one
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Ajay Tiwari
28-Aug-2022 05:12 PM
Very nice
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